Thursday, November 29, 2012
Tuesday, June 12, 2012
आखिरी पत्ता The Last Leaf
पुस्तक का नाम
आखिरी
पत्ता
पुस्तक परीचय
"आखिरी
पत्ता" हेनरी की प्रसिधकहिनियो मे से एक है ।इस कहानी से हेनरी की लेखन शेली के बारे मे पता चलता है ।
जौनसी
के नाम की एक जवान लड़की बीमार
हो गई और निमोनिया से मर रही
है । वह खिड़की के बाहर पेङों
से गिरते पत्ते देखती है और
फैसला करती है कि जब आखिरी
पत्ता गिरेगा वह भी मर जाऐगी
हैं पर स्यू उसे उस तरह सोच
से रोकने की कोशिश करता है ।
पर अंत कूछ और होता है ।
लेखक परीचय
ओ. हेनरी
या विलियम सिडनी पोर्टर
प्रसिद्ध अमेरिकन लेखक थे।
उनका जन्म ११ सितंबर, १८६२
को ग्रीन्सबरो, उत्तर
करोलाइना में हुआ और म्रत्यु
५ जून १९१० को न्यूयार्क में।
पिछले वर्षों में वह अपना बीच
का नाम 'सिडनी'
ही लिखा करते थे।
सोलह वर्ष की उम्र
में उन्होने स्कूल छोड़ दिया,
पर उनकी पढ़ने-लिखने
की आतुरता नहीं छूटी। बचपन
में उन्होने ग्रीन्सबरो की
एक दवाइयों की दुकान में काम
किया था, जहां अब
तक उसकी जयन्ती मनायी जाती
है। उन्नीस वर्ष की अवस्था
में वह अपना स्वास्थ्य सुधारने
के लिए टेक्सास प्रदेश के
गोचरों में रहने चला गया। वहां
उसने घुड़सवारी सीख ली और
जंगली, अड़ियल
घोड़ो को भी वश में करने लगा।
फ़िर में उसे एक खेती-बाड़ी
के दफ़्तर में नौकरी मिल गयी।
आपने आस-पास
के चित्रमय जीवन की जिन वस्तुओं
का भी उसे परिचय हुआ, वे
सब की सब उसकी कहानियों में
छन आयीं। यही कारण है कि उसकी
कहानियां अधिकतर चरागाहों
के प्रदेश, मध्य
अमरीका या न्यूयार्क में घटित
होती है। शहरी जीवन की कहानियों
में जिनके लिए वह प्रसिद्ध
है, जीवन की
विडम्बनाओं कीस्वीक्रति हैं।
वे उनके अपने कटु अनुभवों के
प्रतिबिम्ब हैं।
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Sunday, June 10, 2012
विक्रम और बेताल Vikram Betal
पुस्तक का नाम विक्रम और बेताल
लेखक का नाम भवभूति या बेतालभट्ट
पुस्तक परीचय
विक्रम और बेताल पचीसी कथाओं से युक्त एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेतालभट्ट बताये जाते हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।
बैताल पचीसी की कहानियाँ भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं। इनका स्रोत राजा सातवाहन के मन्त्री “गुणादय” द्वारा रचित “बड कहा” नामक ग्रन्थ को दिया जाता है जिसकी रचना ई. पूर्व ४९५ में हुई थी । कहा जाता है कि यह किसी पुरानी प्राकृत में लिखा गया था और इसमे ७ लाख छन्द थे। आज इसका कोई भी अंश कहीं भी प्राप्त नहीं है। कश्मीर के कवि सोमदेव ने इसको फिर से संस्कृत में लिखा और कथासरित्सागर नाम दिया। बड़कहा की अधिकतम कहानियों को कथा सरित्सागर में संकलित कर दिए जाने के कारण ये आज भी हमारे पास हैं।
लेखक परीचय
भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं नाटककार थे। उनके नाटक, कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं।भवभूति, पद्मपुर में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। पद्मपुर महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है।अपने बारे में संस्कृत कवियों का मौन एक परम्परा बन चुका है, पर भवभूति ने इस परम्परागत मौन को तोड़ा है और अपने तीनों नाटकों की प्रस्तावना में अपना परिचय प्रस्तुत किया है।
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